Saturday, January 15, 2011

उफ़... वोह बरसाती रात

उफ़... वोह बरसाती रात
अकेले कमरे में दो बदन एक साथ

हवा थी जोरो पर
चारों ओर दूर तक सन्नाटा साथ

बिजली कड़कती हुई
पत्ते फडफडाते हुए
खुलती-बंद होती खिड़की का साथ

अँधेरे का फैलाना
बादलों का छा जाना 
बिजली का गुप हो जाना
जलती हुई मोमबत्ती का साथ

उफ़... वोह बरसाती रात
अकेले कमरे में दो बदन एक साथ
[written by romil - copyright reserved]

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