Tuesday, January 4, 2011

हुस्न को बेनकाब होने दीजिये

हुस्न को बेनकाब होने दीजिये
ज़रा थोडा और हमको पास होने दीजिये...
*
ऐसे न लपेटो हमको अपने बदन से - २ 
महबूब मेरे.... 
ज़रा रात को तो और चांदनी होने दीजिये...
*
यूं न झुकाओ नज़रे सनम 
ज़रा नज़रों से यह मदमस्त शराब पीने दीजिये...
*
न कुछ तुम कहो
न कुछ हम कहे 
यह जो हो रहा है आज होने दीजिये...
[WRITTEN BY ROMIL ARORA - COPYRIGHT RESERVED]

No comments:

Post a Comment