Monday, January 24, 2011

नगर की बस

नगर की बस में भी अजीब खेल हुआ करते हैं    
छोटी - छोटी बात पर तमाशे हुआ करते हैं...
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सीट देख ले खाली तोह जानवरों की तरह लपकते हैं
दरवाज़े पर हेंगर की तरह लटके रहते हैं...
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जवानों पर ज्यादा बुढ़ापा चढ़ गया हैं
वोह खड़े नहीं हो सकते, इसलिए सीट पर ही बैठे रहते हैं...
बुड्ढ़े बेचारे अब भी जवान हैं
खड़े होकर सफ़र करते हैं...
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महिलाओ के लिए सीट तोह सरकार ने खाम खा आरक्षित कर रखी हैं
वहां पर अक्सर मर्द बैठा करते हैं...
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बस में मूंगफली के छिलके, 
पान के धब्बे,
चाय के ग्लास जहाँ देखो दिखाई पढ़ जाते हैं
ऐसा लगता हैं जैसे कूड़ा-घर में हम सफ़र करते हैं...
[written by romil - copyright reserved]

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