Thursday, January 20, 2011

तुझसे मिलने की बेक़रारी हैं...

तुझसे मिलने की बेक़रारी हैं
दिन तोह कट गया
अब रात की बारी हैं...
*
मोहब्बत का भी कैसा खेल हैं अजीब
जीत के भी हमने हर बाज़ी हारी हैं...
*
हमको नज़रे मार कर वोह कहते हैं
यह खता हमारी नहीं
नज़रों की बीमारी हैं..
*
कल उनको देखा था किसी अजनबी के साथ बाहों में बाहे डाले हुए
वोह कहते हैं
शक करने की आदत तुम्हारी पुरानी हैं...
[written by romil arora - copyright reserved]

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