Sunday, January 16, 2011

रोमिल V/S रोमिल

रोमिल V/S रोमिल  

रोमिल१ - क्या कभी बिना चाहे भी कोई चीज़ मिलती है?
मेरा कहने का मतलब ये हैं के जो कुछ आपको आज मिला हैं, क्या वो कभी आपने चाह नहीं होगा? और जो आप अब पाना चाहते हो, किसी चीज़ को पाने के लिए इश्वर से प्रार्थना करते हो, तोह क्या वो चीज़ कभी न कभी तुम्हे मिलेगी?

भाई, आप क्या कहोगे???

रोमिल २ - तुम्हारी, इस बात पर मझे अपना बचपन का क्लास रूम याद आ रहा हैं... और उस क्लास रूम में एक्साम देता हुआ मैं...

जब में एक्साम देता था... तब मुझे इतना पता होता था... मुझे १०० में से ८०+ ही मार्क्स आयेंगे.. मगर कभी-कभी एक्सामिनेर मुझे कम मार्क्स दे देता था, ८० से कम मार्क्स देता था... और कभी - कभी किसी एक्साम में मुझे एक्सामिनेर ९० मार्क्स भी दे देता था... मेरी उम्मीद से ज्यादा मार्क्स.... 

इसी पर कुछ बात कहने की कोशिश करूँगा...

१. हमेशा खुद में विश्वास रखो... इतना मुझे मिलेगा ही... इतना मुझे मिलेगा ही... मैंने ८०+ की मेहनत की हैं तोह मुझे उतना मिलना ही चाहिए...  

७५ मार्क्स तक भी चलेगा... मगर मैंने मेहनत ८०+ की हैं और आप मुझे ४० मार्क्स दे रहे हैं तोह यह मुझे बिल्कुल भी स्वीकार नहीं होगा... चाहे मुझे अपने हक के लिए लड़ना ही क्यों न पड़े???

और न आप अपने साथ ऐसा स्वीकार करेंगे...

२. अपनी काबिलियत का खुद मूल्यांकन जरुर करे... आपसे अच्छा आपका मूल्यांकन कोइए नहीं कर सकता हैं... आपसे अच्छे आपकी मेहनत का कोइए मार्क्स नहीं दे सकता हैं... खुद से झूठ मत बोले... खुद का सच्चाई से मूल्यांकन करे... 

३. जब आपने +८० मार्क्स की मेहनत की होती हैं और आपको ९०+ मिल जाता था... यह इसलिए होता हैं क्यूंकि एक्सामिनेर की नज़र में आपकी मेहनत के ज्यादा मार्क्स हैं, उससे आज तक इतनी मेहनत वाला कोइए नहीं मिला...

ठीक उसी तरह जिस तरह बॉस यह समझता हैं की यह कर्मचारी मेरे लिए ज्यादा उपयोगी हैं... इसकी पदोंउन्नति करनी चाहिए... इसकी सलारी बढ़ानी चाहिए... इसको ज्यादा जरुरी काम में लगाना चाहिए... 

४. कोइए भी अविष्कारक तभी सफल होता हैं... जब उसे अपनी मेहनत पर पूरा यकीन होता हैं... फिर चाहे वोह हज़ार बार खुद को नया मौका क्यों न दे...

दुनिया उसे बेवकूफ कहती रहे... मगर वोह सफल होता हैं... नया इतिहास लिखता हैं... क्यूंकि वोह अपनी मेहनत के सही मार्क्स से कभी समझौता नहीं करता...

५. श्री कृष्ण भगवान् ने यह जरुर कहाँ हैं की "कर्म करो, फल की चिंता मत करो"... क्यूंकि वोह जानते थे अगर इंसान +८० की मेहनत करेगा, तोह जरुर उसे +८० मिलेगा, इसके लिए उसे चिंता करने की कोइए जरुरत नहीं हैं...

मन से सुन्दर रहो यार...

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