Friday, July 29, 2011

चादर पर तारे सजाये बैठा था

चादर पर तारे सजाये बैठा था
वोह रात भर चाँद के इंतज़ार में बैठा था...

इंतज़ार था उसे अपने दिल की दुल्हन का
वोह रात को डोली की तरह सजाये बैठा था... 

जुबान में लफ्ज़ अटके हुए थे
वोह कागज़ पर जज़्बात लिखे बैठा था...

जाने कब बज उठे किवाड़ की सिटकनी 
वोह किवाड़ पर नज़रे गड़ाये बैठा था...

जाने क्या सोच कर वोह नहीं आई
सहमा - सहमा सा
डरा - डरा सा
वोह आज भी बिस्तर पर रूह से रूह का एहसास लिए बैठा था...

रोज़ सुबह निकली 
मगर आँखें नहीं सोई रोमिल
न अँधेरा,
न उजाला, 
वोह दिन को रात
और रात को दिन लिए बैठा था...

चादर पर तारे सजाये बैठा था...

#रोमिल

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