Sunday, May 13, 2012

माँ के बिना ज़िन्दगी है, मगर ज़िन्दगी नहीं

जलता हुआ दिया हूँ जिसमें रोशनी नहीं
माँ के बिना ज़िन्दगी  है, मगर ज़िन्दगी नहीं

चार महीने बीत चुके है माँ की चिता की आग को बुझे हुए
लेकिन दिल में जो जल रही है आग अभी वोह बुझी नहीं

यह चाँद, यह बादल, यह फूल, यह हवा, यह फिजा
सब जगह माँ का चेहरा
 कौन कहता है खुदा किसी रोते हुए बच्चे की सुनता नहीं     

और 

यूंह तो सब कुछ हैं मेरे पास कोई कमी नहीं
फिर भी रातों को नींद आती क्यों नहीं।

- रोमिल

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