Thursday, May 17, 2012

कभी मिले खुदा तुझे खुद से फुर्सत तो सुन मेरा भी अहल-ए-फ़साना

कभी मिले खुदा तुझे खुद से फुर्सत तो सुन मेरा भी अहल-ए-फ़साना
एक बच्चे की तड़प, आँखों से आसुओं का आना

यही ज़िन्दगी मुसीबत है फ़िक्र-ए-आशियाना में
कभी यही ज़िन्दगी मुसर्रत थी, इसी आशियाना में था माँ का ठिकाना

मेरे खवाबों में फैली है गर्दिश-ए-जहाँ की
कभी मेरे खवाबों से टपकता था इशरत-ए-शबाना

और

एकाएक एक दिन सनम मेरे घर आकर कहती है
"रोमिल, इस आशियाना से अब मुझको नहीं है जाना"

- रोमिल

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