Saturday, July 26, 2014

Maa kehti thi...

Maa kehti thi...

Beta, mitta bola kar
Khana khane se pehle waheguru jee da sukrana bol liya kar....

Jab dekho tab baahein chhadaye fhirta hai
Thoda thanda hokar... kabhi to apne Veer jee di gal sun liya kar...

Baith mere kol... tenu do gal samjhaundi hun...

"Sacche Patshah nu hamesha meeta bolne wale bande pasand aunde hai.. mitta bola kar...
Kadi bhi Sanskaron ko na chhadi... Sanskaron naal hi zindagi jiya kar... Vadde Veer jee di gal pyar naal sun liya kar..."

thoda mitta bola kar...

#Romil

मां कहती थी... 

बेटा, मीठा बोला कर 
खाना खाने से पहले वाहेगुरु जी दा शुकराना बोल लिया कर... 

जब देखो तब बाहें चढ़ाये फिरता है 
थोड़ा ठंडा होकर... कभी तो अपने वीर जी दी गल सुन लिया कर... 

बैठ मेरे कोल... तेनू दो गल समजाउंदी हूँ... 

"सच्चे पातशाह नु हमेशा मीठा बोलने वाले बंदे पसंद औन्दे हैं... मीठा बोला कर... 
कभी भी संस्कारों को ना छड्ढी... 
संस्कारों नाल ही जिंदगी जिया कर... 
वड्डे वीर जी दी गल प्यार नाल सुन लिया कर..." 

थोड़ा मीठा बोला कर...

#रोमिल

Wednesday, July 16, 2014

kabhi kisi cheez ke baare mein shikayat nahi ki

kabhi kisi cheez ke baare mein shikayat nahi ki
sab kuch le liya usse, magar kabhi usne vakalat nahi ki
yeh ghar, jismein uski maa ki yaadein thi 
yeh ghar hi to uska aakhiri zindagi-e-sukoon tha
khuda tune yeh bhi chenne mein daire nahi ki...

#Romil

कभी किसी चीज के बारे में शिकायत नहीं की 
सब कुछ ले लिया उससे, मगर कभी उसने वकालत नहीं की, 
यह घर जिसमें उसकी मां की यादें थी 
यह घर ही तो उसका आखिरी जिंदगी-ए-सुकून था 
खुदा तूने यह भी छीनने में देरी नहीं की...

#रोमिल

Tuesday, July 15, 2014

abhi karlo jitne bhi karne hai sitam

abhi karlo jitne bhi karne hai sitam, aye gurur insaan,
tujhe hum khuda ke ghar dekhenge.

abhi jarurat hai ghar ko haasil karna
baad mein hum saude ki gehraiyaan dekhenge.

umar bhar paak-sarif raha, bandagi pasand raha
aaj yeh haalat uski
ab tujhse koi sawal nahi, bas ab hum khuda tera faisala dekhenge

kisi roz humse milo, akele mein milo, aye sanam
bas hum tumhein sarifon ki tarah dekhenge.

#Romil

अभी कर लो जितने भी करने हैं सितम, ए गुरूर इंसान,
तुझे हम खुदा के घर देखेंगे. 

अभी जरूरत है घर को हासिल करना 
बाद में हम सौदे की गहराइयां देखेंगे.

उम्र भर पाक-शरीफ रहा, बंदगी पसंद रहा 
आज यह हालत उसकी
अब तुझसे कोई सवाल नहीं, 
बस अब हम खुदा तेरा फैसला देखेंगे. 

किसी रोज हमसे मिलो, अकेले में मिलो, 
ए सनम, 
बस हम तुम्हें शरीफों की तरह देखेंगे. 

#रोमिल

Monday, July 14, 2014

tumhari nazar mein yeh

tumhari nazar mein yeh
psycho
mental
waqt ki barbardi
samaj ki nazar mein badnami
pagalpanti
bewakufpanti

kuch bhi ho...

meri nazar mein
kal bhi yeh
ishq tha
aaj bhi hai
aur
aane wale kal mein bhi yeh ishq hi rahega.

#Romil  

तुम्हारी नजर में यह 
साइको 
मेंटल 
वक्त की बर्बादी 
समाज की नजर में बदनामी 
पागलपंती 
बेवकूफपंती 

कुछ भी हो...

मेरी नजर में 
कल भी यह 
इश्क था 
आज भी है 
और 
आने वाले कल में भी यह इश्क़ ही रहेगा. 

#रोमिल

Sunday, July 13, 2014

Kitni Girhein Kholi Hain Maine, Kitni Girhein Ab Baaki Hain Lyrics

Kitni girhein kholi hain maine, 
kitni girhein ab baaki hai 
paanv mein payal, 
baahon mein kangan, 
gale mein hansli, 
kamar band, 
challe aur bichue 
naak kaan chidwaayein gaye hain aur zevar-zevar kehte-kehte
reet rivaaj ke rassiyon se main jakdi gayi, 
uff kitni tarah main pakdi gayi 

ab chilne lage hain haath paanv aur kitni kharaashein ubhri hain, 
kitni girhein kholi hain maine, 
kitni rassiyaan utari hain 
Ang-ang mera roop rang, mere naksh nain, mere bol bain 
meri aawaaz mein koyal ki tareef hui, mere zulf saanp, meri zulf raat, 
zulfon mein ghata mere lab gulaab, meri aankhein sharaab 
ghazal aur nazmein kehte-kehte husn aur ishq ke afasano mein main jakdi gayi
uff kitni tarah main pakdi gayi 

main poochun zara, aankhon mein sharaab dikhe sabko, akaash nahi dekha koi 
saawan bhado to dikhe magar, kya dard nahi dekha koi 
phan ki jheeni si chaadar mein, buth cheele gaye uriyaani ke 
taaga-taaga karke poshaaq utaari gayi 
mere jism pe phan ki mashq hui aur art kala kehte-kehte sange marmar mein jakdi gayi 
batlaaye koi batlaaye koi, 
kitni girhein kholi hain maine, 
kitni girhein ab baaki hain.

चलो अब कुछ मीठा बोल दो !

सुनकर तुम्हारी बातें
रोते हुए कटी है रातें
दिन भी मरा-मरा सा बीता है
शाम भी रोई-रोई सी आई है। 

खुद पर कोई सितम न ढाओ   
जो सज़ा देनी है मुझे दे दो

चलो अब कुछ मीठा बोल दो !

#रोमिल

यह घर ख़रीदना मेरी हसरत है
मेरी चाहत है 
मेरा ज़िन्दगी-ए-सुकून है
मैं इस घर को खरीदने के लिए हर सौदा करने को तैयार हूँ
इस घर की चौखट पर मेरी माँ ने आख़िरी सांसें जो ली थी। 
#रोमिल

वोह मासूम सा लड़का

वोह मासूम सा लड़का
जो दूसरों को ज़िन्दगी जीने की हिम्मत देता था
कमजोरों को हौसला देता था 
राह में चलते-चलते किसी भी अज़नबी के होंठों पर मुस्कान बिखेर देता था
हर पल गुदगुदाता
हर पल मुस्कुराता
जो सच का आईना होता था।  

जब रोना हो तो चुपके से बाथरूम में जाकर आईना के सामने रो लेता था। 

रात को उठकर चाँद को चुटकुले सुनाता
शायरी सुनाता
तारों से बातें करता था
अंधेरों को गीत सुनाता। 

सुना है कल रात उसने खुदखुशी कर ली।

#रोमिल

चलो यह कहकर

चलो यह कहकर उससे रिश्ता तोड़ देते है...

आपकी नौकरी मेरे उसूलों पर खरी नहीं उतरी   
और 
मैं आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा।

#रोमिल

Saturday, July 12, 2014

raston mein hi ulajh ke bhatak jaogi...

yeh samaj,
yeh zidd,
ki deewarein tumne hi khadi ki hai
bina isko toode kaise aa paogi...

raston mein hi ulajh ke bhatak jaogi...

#Romil

यह समाज, 
यह ज़िद, 
की दीवारें तुमने ही खड़ी की है बिना इसको तोड़े कैसे आ पाओगी... 

रास्तों में ही उलझ के भटक जाओगी... 

#रोमिल

tumko shauk hai par katarne ka

tumko shauk hai par katarne ka
shauk se katro
par yeh dhyan rahe
mujhse uddne ka hausala tum nahi cheen paoge!

#Romil

तुमको शौक है पर कतरने का 
शौक से कतरों 
पर यह ध्यान रहे 
मुझसे उड़ने का हौसला तुम नहीं छीन पाओगे! 

#रोमिल

मेरी चुप्पी को मेरी कमजोरी मत समझो!

मेरी चुप्पी को मेरी कमजोरी मत समझो!

यह तो माँ के संस्कार है जो मैं कुछ बोलता नहीं
वरना
एक बात मैं तुमको बता दूँ

हम सिख है
सिख !!!

अगर गुरु नानक देव जी ने दोनों हाथ जोड़कर सर झुकाना सिखाया है 
तो
गुरु गोबिंद सिंह जी ने उन्हीं हाथों में किरपाल पकड़कर दुश्मन का सर काटना भी सिखाया हैं।

#रोमिल

Friday, July 11, 2014

do-chaar faristee hi zameen pe utar de.

kuch nahi kar sakta to
itna hi kar de
ramzan ka pak mahina chal raha hai
do-chaar faristee hi zameen pe utar de.

#Romil

कुछ नहीं कर सकता तो 
इतना ही कर दे 
रमजान का पाक महीना चल रहा है 
दो-चार फरिश्ते ही जमीन पे उतार दे. 

#रोमिल

लेटे-लेटे आँखें आँसूओं से भर जाती है

लेटे-लेटे आँखें आँसूओं से भर जाती है,
उसकी कहीं हुई जब एक-एक बात याद आती है,
जवाब उसको खुला दूँ,
बस दिल यही कहता है
मगर माँ के संस्कारों की बेड़ियां जकड़ जाती है। 

कहीं रोते-रोते मर न जाऊं।
यहीं अच्छा होगा।

#रोमिल

माँ भी कितनी प्यारी चौकीदार होती थी।

चौकीदार

सुबह उसको जल्दी उठना है
पढ़ाई भी तो करनी है उसको
सुबह की चाय कहीं खाली पेट तो नहीं पी रहा 
नाश्ता ठीक से उसने किया की नहीं

ऑफिस जाते हुए कहीं कुछ कागज़ भूल तो नहीं गया
दिन में समय से उसने खाना खाया की नहीं
खाना ठंडा तो नहीं हो गया था कहीं

इतनी देर हो गई अभी तक घर क्यों नहीं आया
स्कूटर तो उसका ख़राब नहीं हो गया है कहीं
अभी पूछती हूँ.… 

खाना खाकर समय से सो गया है की नहीं
इतनी रात तक कमरे की बत्ती क्यों जल रही है  
लैपटॉप के साथ जाग तो नहीं रहा कहीं
अभी देखती हूँ.… 

माँ भी कितनी प्यारी चौकीदार होती थी। 

#रोमिल

Thursday, July 10, 2014

मौत अक़्सर ज़िन्दगी के लिबास में आती है।

किसी बंद लिफ़ाफे में छुपी ख़ुशी की तरह   
मौत अक़्सर ज़िन्दगी के लिबास में आती है। 

#रोमिल

कर्ज़

आसमां के नीचे, ज़मीं के ऊपर रहने का कुछ कर्ज़ तो उतारना ही पड़ेगा
अगर वोह साँसें देकर, बंदगी मांगता है, तो क्या बुरा करता है?
इन साँसों का कुछ कर्ज़ तो उतारना ही पड़ेगा।

उसकी कड़वी बातें मुझे रातभर सोने नहीं देती
यह ज़लालत भरी ज़िन्दगी सांसें लेने नहीं देती
रोने से क्या हासिल होगा रोमिल?
चंद मुठ्ठी भर ढेलियों का कर्ज़ तो उतारना ही पड़ेगा।

 इंसाफ चाहिए मुझे!
अपनी हर जलालत का, अपनी हर बेज्जती का
देख नाज़.… इस बार, दोस्ती का कर्ज़ तो उतारना ही पड़ेगा।

#रोमिल

Wednesday, July 9, 2014

ruksat karo to duaoon ke saath karo

ruksat karo to duaon ke saath karo
itna to ehsaan mujhpar deewan-e-yaar karo.

vaada hai... ek ruksat hote insaan ka vaada hai...
nibhaunga jarur...
itna to aitbaar-e-yaar karo.

purani pehchaan hai, zaara muskura bhi do
chaho to gale se lagkar shikwe hazaar karo.

sunadi usne do baatein,
sunane do
aaj uska waqt hai
kal hum sunayenge
hamara bhi waqt aayega
jaagkar ab neendon ko to na dushwaar karo.

#Romil

रुख़सत करो तो दुआओं के साथ करो 
इतना तो एहसान मुझपर दीवान-ए-यार करो.

वादा है... एक रुख़सत होते इंसान का वादा है... 
निभाऊंगा जरूर... 
इतना तो ऐतबार-ए-यार करो. 

पुरानी पहचान है, जरा मुस्कुरा भी दो 
चाहो तो गले से लगकर शिकवे हजार करो.

सुना दी उसने दो बातें, 
सुनाने दो 
आज उसका वक्त है 
कल हम सुनाएंगे 
हमारा भी वक्त आएगा 
जागकर अब नींदों को तो ना दुश्वार करो. 

#रोमिल

ए मौत मेरा तुझसे वादा है.…

ए मौत मेरा तुझसे वादा है
तू जब भी आएगी, मुझे मुस्कुराता ही पाएगी
गुदगुदाता हुआ, उड़ती-फिरती तितलियों के तरह ही पाएगी
बाहें खोलकर मैं तुझे अपनी आग़ोश में लेने की गुज़ारिश करूँगा
मिट्टी में मिल जाने की आरज़ू रखूँगा
ज़िन्दगी के सारे रंग ख़्वाब बन आँखों में उतर चलेंगे
और 
मैं, 
सफ़ेद रंग ओढ़कर गुज़रे हुए मौसम की तरह गुज़र जायूँगा।       

ए मौत मेरा तुझसे वादा है.… 

#रोमिल

आज जमकर रोया हूँ

आज जमकर रोया हूँ
नाज़ क़सम, फ़ूट-फ़ूटकर रोया हूँ
बरसात की तरह बस बरसती जा रही थी आँखें
सिसकियों में बस खो सी गई थी आवाज़ें।

आज़ बचपन का रोना याद आ गया...
बहती हुई नाक को शर्ट की आस्तीनों से पोछना याद आ गया.…

आज की बेईज़्ज़ती याद रहेगी 
मैं कुछ नहीं बोलूंगा, न जवाब दूँगा
मेरी नाज़ देगी
तुम्हारे हर एक इ-मेल का, तुम्हारे हर एक सवाल का...

नाज़ कसम...

#रोमिल

Tuesday, July 8, 2014

Zindagi Gulzar Hai - Kashaf











आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

किताबों की ढ़ेर पर बैठकर
पन्ने पलटते हुए
यह कहता रहता
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा
चाहे किसी भी पन्ने पे छुपी हो
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

अफ़सरी-नौकरशाही  
दौलत-शौहरत
रूपया-कोठियां
अगल-बगल नाचती हुई यह गाड़ियाँ
क्या यह है तरक़्क़ी?

झूठ बोलती-मतलबी
खुद ही में खोई हुई-खुद ही में झूमती 
रुपयों के पीछे भागती-नाचती 
डरी हुई-सहमी हुई
एक दूसरे का गला घोटती हुई  
संस्कारों की लाशों पे चढ़ी हुई
क्या यह है तरक़्क़ी?

आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

आम की चौपाल लगाये हुए ज़माना हो गया
किसी अंजान की होंठों पे ख़ुशी लाये एक अरसा बीत गया
अब तो रात में नींद भी चैन से आती नहीं
भोर में पैरों तले पेड़ के पत्तों की आवाज़ सुनाई देती नहीं
सब दिल की ख़ुशी के पल खो चुके है  
क्या यह है तरक़्क़ी?

आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

बीमार हो तो पड़ोसी भी हाल पूछता नहीं
अब कोई छतों पे मर्तबानों में आचार रखता नहीं
सच्ची बात किसी के लबों से सुने हुए ज़माना हो चला है 
ऑफिस, घर की परेशानियों में रोज शराब पीना बहाना हो चला है
हमदर्दी के पल खो चुके है  
क्या यह है तरक़्क़ी?

आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

पन्ने पलटते-पलटते
किताबों का ढ़ेर खत्म हो गया
पर मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ न सका 
न जाने किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

#रोमिल

Monday, July 7, 2014

ज़िद

दोनों अपनी-अपनी ज़िद पर अड़े हुए है...

वोह बुढ़िया कभी उठकर अंदर नहीं जाती
सुबह से लेकर शाम उसी मंदिर की सीढ़ियों पर ही है बिताती
वोह पत्थर का खुदा कभी उठकर बाहर नहीं आता
ना कभी उसका हाल पूछता
ना कभी उसको समझाता।

ना जाने यह कैसी ज़िद है?

चौखट पर कोई बैठा है
और
बोलचाल भी नहीं है।

रूठी हुई, मुँह फुलाएं हुए
नाराज़ सी, खामोश सी, उदास सी
उस बुढ़िया को जब मैं देखता हूँ
यह समझ नहीं पाता 
कि जिस खुदा ने दया, उपकार, झुकना सिखाया
वोह खुदा, खुद क्यों नहीं ज़िद छोड़कर मंदिर के बाहर आ जाता
उस बुढ़िया को अपने हाथों से उठाकर,
कंधों के सहारे,
मंदिर के अंदर ले जाता
अपने पास बैठाता
उसका हाल पूछता
उसको ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा सिखाता। 

#रोमिल

aisa lagta hai jaise kisi ne badal ke kaan umed diye ho

aisa lagta hai jaise kisi ne badal ke kaan umed diye ho
aaj jam kar barsa hai woh mere shehar mein...

#Romil

ऐसा लगता है जैसे किसी ने बादल के कान उमेड़ दिये हो
आज जमकर बरसा हैं वो मेरे शहर में...

#रोमिल

Sunday, July 6, 2014

ab yeh hi samjho jeene ki rasm nibha raha hoon

ab yeh hi samjho jeene ki rasm nibha raha hoon
ya adhure khawabon ko poora karne ka farz nibha raha hoon

saansein chubhati hai rooh mein
barson se padi kitabon par se dhool udha raha hoon
aisa lag raha hai ki zindagi ka bhoj utha raha hoon

reh-reh kar logon ki katati baatein yaad aati hai
chand sikkon ki dheliyon ke beech dabi hui majbooriyan satati hai
aawazein bhi aansooyon ke beech badal si jaati hai
jism se nikal kar saansein ab rooh hi ho jaana chahti hai
zameen ko chhod kar aasmano mein gudgudana chahta hoon.

ab yeh hi samjho jeene ki rasm nibha raha hoon
ya adhure khawabon ko poora karne ka farz nibha raha hoon.

#Romil

अब यह ही समझो जीने की रस्म निभा रहा हूं 
या अधूरे ख्वाबों को पूरा करने का फर्ज निभा रहा हूं 

सांसे चुभती है रूह में 
बरसों से पड़ी किताबों पर से धूल उड़ा रहा हूं 
ऐसा लग रहा है कि जिंदगी का बोझ उठा रहा हूं.

रह-रह कर लोगों की काटती बातें याद आती है
चंद सिक्कों की ढेलियों के बीच दबी हुई मजबूरियां सताती हैं
आवाज़ें भी आंसुओं के बीच बदल सी जाती है 
जिस्म से निकलकर साँसें अब रूह हो जाना चाहती है जमीन को छोड़कर आसमानों में गुदगुदाना चाहता हूं.

अब यह ही समझो जीने की रस्म निभा रहा हूं 
या अधूरे ख्वाबों को पूरा करने का फर्ज निभा रहा हूं.

#रोमिल

kabhi-kabhi

kabhi-kabhi jo sneh, dulaar, mamta hamari nazarein dhund rahi hoti hai
woh humko ajnabiyon mein mil jati hai
khoon ke rishton mein nahi.

par majbooriyaan to dekho
hum ajnabiyon se yeh izhaar kar hi nahi paate...

कभी-कभी जो स्नेह, दुलार, ममता हमारी नजरें ढूंढ रही होती है वो हमको अजनबियों में मिल जाती है, खून के रिश्तो में नहीं. 

पर मजबूरियां तो देखो 
हम अजनबियों से यह इज़हार कर ही नहीं पाते...
*****
kabhi-kabhi zindagi mein aaisa kuch ho jata hai ki
dil chahta hai ki abhi marr jayun...

behzati... bardasht nahi hoti mujhse...

dil chahta hai ki abhi marr jayun...

fir tham sa jata hoon yeh soch kar
ki main marr gaya to meri maa haar jayegi...

कभी-कभी जिंदगी में ऐसा कुछ हो जाता है कि 
दिल चाहता है कि अभी मर जाऊं... 

बेइज्जती... बर्दाश्त नहीं होती मुझसे... 

दिल चाहता है कि अभी मर जाऊं... 

फिर थम सा जाता हूं यह सोच कर कि मैं मर गया तो मेरी मां हार जाएगी...
***** 
kabhi-kabhi sochata hoon
kya yahi dunia khuda banana chahta tha
isi dunia par woh naaz, woh fakr karna chahta tha.

matlabhi
dhokebaaz,
laalchi... rupiyon ke gulam,
farebi
inhi sab ko apna baccha kehna chahta tha
kya yahi dunia khuda banana chahta tha...

har taraf ek daud si lagi hui hai
tarakki-shan-o-shauqat ke peeche dunia bas bhaag rahi hai
lashon par bhi rupiyon ki mohar si lagi hui hai
inhi sab ko woh zindagi kehna chahta tha
kya yahi dunia khuda banana chahta tha...

#Romil

कभी-कभी सोचता हूं 
क्या यही दुनिया खुदा बनाना चाहता था 
इसी दुनिया पर वो नाज़, वो फ़क्र करना चाहता था. 

मतलबी, 
धोखेबाज, 
लालची... रुपियों के ग़ुलाम, 
फ़रेबी 
इन्हीं सबको अपना बच्चा कहना चाहता था 
क्या यही दुनिया खुदा बनाना चाहता था...

हर तरफ एक दौड़ सी लगी हुई है 
तरक्की शान-ओ-शौकत के पीछे दुनिया बस भाग रही है
लाशों पर भी रुपयों की मोहर सी लगी हुई है 
इन्हीं सबको वो जिंदगी कहना चाहता था 
क्या यही दुनिया खुदा बनाना चाहता था...

#रोमिल

Friday, July 4, 2014

kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon

kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon
ziddi hoon
ya fir bewafa hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.

rasmo ki - rivajon ki
ya fir in samajhon ki
khokhali soch mein jakadi hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.

mehalon mein qaid hoon
ishq ki galiyon se door hoon
yaadon mein lipati hui
darri-sehmi hoon
waqt ki zanzeron mein giraftar hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon. 

maine use chaha
apna diwana banaya
fir chhod diya
jo khilauna sabse jyada pasand tha mujhe 
wo hi be-rehmi se toodh diya
chaalak ya fir bewakuf hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.

woh roya
main hasti rahi
woh chillaya
main khud mein khoi rahi
khudgarj ya fir be-dard hoon
kaise samjhau ki kyon abhi tak safar mein hoon.

#Romil

कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूं 
जिद्दी हूं 
या फिर बेवफा हूँ 
कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूं.

रस्मो की-रिवाजों की 
या फिर इन समाजों की 
खोखली सोच में जकड़ी हूं 
कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूं.

महलों में कैद हूं 
इश्क़ की गलियों से दूर हूं 
यादों में लिपटी हुई 
डरी-सहमी हूँ 
वक्त की जंजीरों में गिरफ्तार हूं 
कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूँ.

मैंने उसे चाहा 
अपना दीवाना बनाया 
फिर छोड़ दिया 
जो खिलौना सबसे ज्यादा पसंद था 
वो ही बेरहमी से तोड़ दिया 
चालाक हूं या फिर बेवकूफ हूं 
कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूं.

वो रोया 
मैं हस्ती रही 
वो चिल्लाया 
मैं खुद में खोई रही 
खुदगर्ज या फिर बे-दर्द हूं 
कैसे समझाऊं कि क्यों अभी तक सफर में हूं.

#रोमिल

Thursday, July 3, 2014

मुझे आम इसलिए पसंद है...

मियां मुझे आम इसलिए पसंद है
यह वोह फल जो हर ग़रीब की जेब में आसानी से आ जाता है।

 वरना मेरा पसंदीदा फल "खिरनी" है। 

#रोमिल

फ़क्र है मुझे अपनी माँ की तालीम पर

फ़क्र है मुझे अपनी माँ की तालीम पर
जिन्होंने मेहनत की दाल-रोटी खाना सिखाया
हराम के मुर्ग़ मुसल्लम नहीं।

इसलिए मैं खुदा से नज़रें मिलाकर बात करता हूँ
कि मुझमें कोई ऐब नहीं। 
 दौलत की चाह नहीं।
मौत का खौफ नहीं।

 मुझे बचपन में कम मार्क्स लाने की चिंता नहीं रहती थी
बल्कि चिंता इस बात की रहती थी कि क्या मैं इतने मार्क्स ला पायूँगा 
कि मुझे स्कॉलरशिप मिल सके।

ज़रा गौर से देखो उसकी तरफ़
उसके बदन पर कोई क़ीमती जेवर नहीं है
न ही महँगे लिबास है
पर
खुदा ने उसको तालीम के जेवरों से नवाज़ा है। 

मैं नौकरी कर रहा हूँ, मेरी मजबूरी है
वोह मुझसे अपनी नौकरी करवा रहा है, उसकी क़िस्मत है
मगर इज़्ज़त बेच दूँ इतना मज़बूर नहीं।

#रोमिल

Wednesday, July 2, 2014

yeh Car wale hai...

yeh Car wale hai,
music mein khoye honge,
inhein kaha pukarati aawaazein sunai dengi
inki nazron ke saamne chhada hua hai sheesha
inhein kahan suratein pehchan dengi...

chhodo... inke peeche bhagate-bhagate gir jaoge
kahan inki raftarein tham payengi
chhodo... khoye rehne do inko apni mehfilon mein
kahan inko kisi ki mohabbat dikhai degi.

chalo... uthate hai apni Cycle
pind da ek chakkar lagate hai
bachpan ki galiyon se nikalte hai
yahi yaadein fir se aansuyon se bhari aankhon mein khushiyaa layengi.

#Romil

यह कार वाले हैं, 
म्यूजिक में खोए होंगे, 
इन्हें कहां पुकारती आवाजें सुनाई देंगी 
इनकी नजरों के सामने चढ़ा हुआ है शीशा 
इन्हें कहां सूरतें पहचान देंगी...

छोड़ो... इनके पीछे भागते-भागते गिर जाओगे 
कहां इनकी रफ्तारें थम पाएंगी 
छोड़ो... खोए रहने दो इनको अपनी महफ़िलो में 
कहां इनको किसी की मोहब्बत दिखाई देगी...

छोड़ो... उठाते हैं अपनी साइकिल पिंड दा एक चक्कर लगाते हैं 
बचपन की गलियों से निकलते हैं 
यही यादें फिर से आंसुओं से भरी आंखों में खुशियां लाएंगी.

#रोमिल