Friday, September 24, 2010

जो हम जवानी में फिसले न होते

जो हम जवानी में फिसले न होते
अल्लाह कसम इतने बुरे दिन हमारे न होते.
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नींद से हमारा भी ताल्लुक होता
जो खवाब हमने मोहब्बत के न सजाये होते.
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कागज़ पर लिखी थी मोहब्बत की कहानी, बारिशों में धुल गई
काश हमने पत्थर पर कलम चलाये होते.
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देखते ही देखते लोगों की नज़रे बदल गई 
काश हम नज़रों के धोखे समझ पाए होते.
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