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Thursday, November 3, 2011

वो दिन

वो दिन

वो दिन कितने याद आते है. जब पार्क में खेलते-खेलते, जींस के घुटने पर घास के धब्बे लग जाते थे. 
जब सुबह ब्रुश को माइक की तरह हाथों में पकड़कर गाना गाते थे. 
जब सुबह और शाम को दूध पीने के समय, ऊपर छत पर जाकर एक कोने में छुप जाते थे. 
जब बीमारी में खाने को दवाई टिकिया मिलती थी तो उसको बेड के नीचे फेंक देते थे 
और 
जब सर्दियों में रजाई के अन्दर छुपकर एक-दूसरे को गुदगुदी करते थे और फिर सर से रजाई ओढ़कर सो जाते थे.

Friday, October 28, 2011

उससे दूरियों की वजह से

उससे दूरियों की वजह से मैं खुद में खोता चला गया... मन से विवश होकर जब भी मैं उसे ईमेल करता था, इंग्लिश भाषा में उसका जवाब और बिना प्यार के शब्द लिखे ख़त समाप्त कर देना यह बात उजागर कर देता था कि हमारे बीच फ़ासला कितना बढ़ गया है... मैं ईमेल बंद कर देता था और फिर खुद में खो जाता था और ज्यादा देर रात तक काम करता था...