Showing posts with label Sach Se Rubaru. Show all posts
Showing posts with label Sach Se Rubaru. Show all posts

Friday, January 16, 2015

Us pal...

Us pal mujhe yeh Rab ek jhoot lagta hai...
Jis pal ek masoom baccha apna dard bayaan karta hai...

#Romil

उस पल मुझे यह रब एक झूठ लगता है...
जिस पल एक मासूम बच्चा अपना दर्द बयान करता है...

#रोमिल

Thursday, October 4, 2012

आज माँ का पहला श्राद्ध था। हवन हुआ।  यह पल भी उम्र भर याद रहेगा।   

Thursday, August 9, 2012

Accha lagta hai...

Bas kar ke dekho accha lagta hai... rooh ko sukun milta hai...

Ab mujhe hi dekho waise to GuNn ke saath koi rishta nahi hai... Maa ki mrityun ke baad to bilkul bhi koi rishta rakhana nahi hai... fir bhi aaj 6th anniversary thi to socha aaj khushi ke pal ke liye naye kapde hi khareed loon... to fir Reliance Trends se shirts aur jeans purchase kar li... accha lagta hai... rooh ko sukuun deta hai yeh sab... main nahi chahunga ki kabhi main khud se koi baimani karu, kabhi apni rooh ko dhokha doon...

Accha lagta hai...

Pyar apni jagah hota hai...  magar sahi aur galat ka faisala karne wala hi saccha insaan hota hai...pyar to GuNn se bahut hai, magar main kabhi galat insaan ka saath nahi de sakta.

Issi tarah bhai woh galat hai to uska saath chahe na do, magar apne bacchon ke prati kartavya jarur nibhao... accha lagta hai... kar ke dekhana accha lagta hai... ek din woh bhi sahi raste par aa jayegi..

Mann se sundar raho.

Friday, February 3, 2012

मुमकिन है मेरी बात से किसी को पहुँची हो ठेस


मुमकिन है मेरी बात से किसी को पहुँची हो ठेस

मगर मैंने आज तक कभी किसी को धोखा नहीं दिया.

Thursday, January 26, 2012

राह में मशाल जलाये रहती थी

राह में मशाल जलाये रहती थी
मुझको ज़िन्दगी की ठोकरों से बचाए रहती थी...

यम नहीं आता था मेरे करीब
दुआओं की ऐसी ताबीज़ पहनाई रहती थी...

गायब हो जाते थे मेरी आंसू पल भर में जाने कहाँ
वोह खुशियों की ऐसी चादर मुझे उड़ा देती थी...

एक रोज़ ऐसा हुआ मैं रात को भूखा सो गया
रोमिल, एक रोज़ ऐसा हुआ मैं रात को भूखा सो गया  
उस रोज़ से मेरी माँ मुझे बिना खिलाये नहीं सोती थी...

मेरे गुस्से पर भी प्यार बरसाती थी
मेरी माँ ऐसी ममता की मूरत होती थी...

अब कोई मुझसे पूछता नहीं

अब कोई मुझसे पूछता नहीं
तू घर जल्दी आता क्यों नहीं?

फिर सुबह जागने में नौटंकी करेगा
टी.वी. बंद कर जल्दी सोता क्यों नहीं?

बाहर इतनी ठण्ड पड़ रही है
तू टोपी, दस्ताने पहनता क्यों नहीं?

जैसे समझाऊ यह बात इस पागल दिल को रोमिल
माँ जैसा कोई होता क्यों नहीं?

Wednesday, January 25, 2012

जब तक मैं न सो जाऊ, माँ जागते रहती थी...


गले में जेवर की तरह लपेटे रहते थी
रोमिल, जब तक मैं न सो जाऊ, माँ जागते रहती थी...
***

सुबह जब आँखें खोलू तो माँ सिरहाने बैठे रहती थी
रोमिल, कभी भी मुझे घर से बिना दूध पिए निकलने नहीं देती थी...

Sunday, November 13, 2011

ज़िन्दगी

ज़िन्दगी

अगस्त २००६ से ०६ साल हो गए और मैं अब भी उसी जगह पर हूँ. उसने ०६ साल पहले ही मेरा साथ दिया होता तो मेरी ज़िन्दगी के वोह महत्वपूर्ण ०६ साल खुशियों के साथ बीतते. कुछ लोग कहते है तुम सब भूल क्यों नहीं जाते? क्यों इतना क्रोधित हो उठते हो? अगर वोह उन ०६ सालों की कीमत समझ सकते, तो मुझसे यह सवाल नहीं करते. दर्द का एहसास उसे ही पता होता है, जिसे ज़ख्म मिला हो. वैसे भी मन में लगे ज़ख्मों के दाग जाते नहीं है. एक-दो ही लोग है जो मेरी आँखों में उतरकर दिल तक पहुँच जाते है और देख पाते है कि जो लड़का हर पल मुस्कुराता रहता है, मजाक किया करता है, उसका मन कितना दुःख से भरा हुआ है. मैंने ज़िन्दगी का वोह घिनौना चेहरा देखा है, जो मैं नहीं चाहता कि कोई भी बच्चा, इंसान कभी देखे. मुझे ज़िन्दगी से कोई प्यार नहीं है, सिर्फ अपने कर्तव्यों के लिए ज़ी रहा हूँ. 

Thursday, November 3, 2011

वोह दिन

वोह दिन

वोह दिन कितने याद आते है. जब पार्क में खेलते-खेलते, जींस के घुटने पर घास के धब्बे लग जाते थे. 
जब सुबह ब्रुश को माइक की तरह हाथों में पकड़ कर गाना गाते थे. 
जब सुबह और शाम को दूध पीने के समय, ऊपर छत पर जाकर एक कोने में छुप जाते थे. 
जब बीमारी में खाने को दवाई टिकिया मिलती थी तो उसको बेड के नीचे फेक देते थे और 
जब सर्दियों में रजाई के अन्दर छुपकर दूसरे को गुदगुदी करते थे और फिर सर से रजाई ओढ़ कर सो जाते थे.

Wednesday, November 2, 2011

मार्गदर्शन

मार्गदर्शन

जो नाज़ मुझे दे सकती थी, उसने हमेशा दिया. जितना मार्गदर्शन मेरा कर सकती थी उसने किया. उसने हर क़दम पर मेरा सहयोग किया, हौसला बढाया. उसकी हर सलाह मेरे विषेले जीवन में अमृत की बूँद का काम करती थी. उसने मेरी हर समस्या को दूर करने का पूरजोर प्रयास किया.       

मैं नाज़ को "बेस्ट टीचर" कहता था
और
वोह मुझे "बेस्ट स्टूडेंट" बुलाती थी.

Tuesday, November 1, 2011

अगर

अगर

अगर मुझे इस जन्म में दो बेटियाँ होती है, तो मैं उस जगह नाज़ और गुन को देखना चाहूँगा. उस नाज़ को और उस गुन को जिसे मैं जानता था, जिससे मैं मिला था. जिसकी अनुभूति, उपस्थिति को मैंने महसूस किया था. जिसके एहसास ने हौले से मेरा हाथ दबाया था, मेरे शरीर को गर्माहट दी थी, मेरे नंगे पैरों को अपने हाथों में थामा था. 

कहते है "मृत्यु ज़िन्दगी खत्म करती है, रिश्ते नहीं"  



Monday, October 31, 2011

समय

समय 

एक समय मैं गुन से मिलने के लिए इतना व्याकुल था जितना एक पिल्ला दूध के लिए होता है. उसकी इतनी देख-रेख करना चाहता था जितना कोई माँ, कार की सीट पर बैठे अपने बच्चे के साथ करती है. उसे उस तरह प्यार से सुलाना चाहता था जिस तरह कोइए माँ-पिता अपने बच्चों को माथे पर चूम कर शुभ रात्रि कहते हुए सुलाते है.

और एक समय मैं उससे इतनी नफरत करता था कि किसी दुकान का नाम उसके नाम से मिलाता हो तो मैं उस दुकान के मालिक से उस नाम को हटाने की गुज़ारिश करता था. 

Sunday, October 30, 2011

यादें

यादें

सब लोगों ने मुझे नाज़, गुन की यादों को भुला देने को कहा था जबकि मैं उसे दुनिया के साथ बाँटना चाहता था. मुझे नहीं पता दुनिया को यह क्यों लगता है कि यादें हमेशा दुःख देती है, जबकि मेरा अनुभव यह कहता है कि यादें हमेशा सुख-शांति देती है. घर में कभी इनकी आवाज़ सुनाई दे जाती है, जब मैं बिल्कुल अकेला होता हूँ, कभी ट्रेन में तो कभी बस में उनका एहसास होता है. जब कभी भी मैं अकेले में उनकी आवाज़ सुनता था या उनको याद करता था तो ऐसा लगता था कि वोह वही पर है, मेरे आस पास...

सच कहती थी नाज़ "सुल्तान, तू बहुत जोक मरता है न, सबका मज़ाक बनाता है, एक न एक दिन मैं तुमको बहुत रुलाकर रहूँगी. 

सच कहती थी वोह.

Saturday, October 29, 2011

मानवीय स्पर्श...

मानवीय स्पर्श...

हम चाहे स्नेह भरा मानवीय स्पर्श अस्सी साल के बुजुर्ग को ही क्यों न दे, मगर वोह उसे एक बच्चे की तरह महसूस करता है. और चाहे अस्सी साल का बुजुर्ग हमको आशीर्वाद भरा मानवीय स्पर्श दे, मगर वोह उसे खुद अपने अन्दर एक बच्चे की तरह महसूस करता है.

जब लोग अस्वस्थ होते है, तब उनको करुणा, ममता भरा मानवीय स्पर्श उसके मुख पर प्यारी सी मुस्कान बिखेर देता है.

मुझे अच्छी तरह आज भी याद है गुन ने मुझे लिखा था "मुझे बेड सोर्स हो गए है". तब मैंने कहाँ था कि जहाँ - जहाँ बेड सोर्स हुए है मैं वहां कीस करके सारे बेड सोर्स ठीक कर दूंगा.

मानवीय स्पर्श किसी भी इंसान को मानसिक शांति देता है. 

Friday, October 28, 2011

उससे दूरियों की वजह से

उससे दूरियों की वजह से मैं खुद में खोता चला गया... मन से विवश होकर जब भी मैं उसे इ-मेल करता था, इंग्लिश भाषा में उसका जवाब और बिना प्यार के शब्द लिखे ख़त समाप्त कर देना यह बात उजागर कर देता था कि हमारे बीच फ़ासला कितना बढ़ गया है... मैं इ-मेल बंद कर देता था और फिर खुद में खो जाता था और ज्यादा देर रात तक काम करता था...