Sunday, October 3, 2010

आइना हूँ बिखर जायूँगा पत्थर न उठाओ यारों

आइना हूँ बिखर जायूँगा  पत्थर न उठाओ यारों
बड़ी कोशिश से संभाला हूँ मुझे न नज़र से गिराओ यारों...
*
हवा चली और मेरा आशियाना उड़ गया - 2
ज़ख्म भर गया हैं उससे न कुरेदो यारों....
*
यह किस सोच में दिन भर फिरता हूँ
दिल से तो वोह चला गया हैं मगर निशान छोड़ गया यारों...
*
वोह साथ था तो ज़माना मेरा दुश्मन था
अब तो दुश्मन भी प्यार से गले मिलता हैं यारों...
*
यह कौन सा दर्द मिला हैं मुझको
जुदा होकर भी मुझसे जुड़ा-जुड़ा  लगता हैं यारों...
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1 comment:

  1. nice nawab sab,

    zndgi se pucho ke wo kya chahti hai,
    bas ik usi ke wafa chahti hai,

    kitni masum aur nadan hai zndg,

    khud be-wafa hai aur dusro se wafa cahti hai

    RR

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