Friday, November 12, 2010

दो क़दम साथ चले थे की मोड़ आ गया

दो क़दम साथ चले थे की मोड़ आ गया
मुहब्बत का कोइए हमको
सबक सीखा गया...
दो क़दम साथ चले थे की मोड़ आ गया
मुहब्बत का कोइए हमको
सबक सीखा गया...
*
यह सच है
यह सच है
हाँ यह सच है
मुझे उनसे शिकवे है हजारो
यह सच है मुझे उनसे शिकवे है हजारो
पर न जाने क्यों यह क़दम उनकी चौखट पे आ गया.
दो क़दम साथ चले थे की मोड़ आ गया....
*
अर्ज़ है...
"अभी बरसात को रोक ले ए मेरे जान-ए-खुदा
मेरा महबूब अभी कही रास्ते में होगा"
*
दो क़दम साथ चले थे की मोड़ आ गया....
न वोह रंग अब दोस्ती का, न वोह रंजिश रही
जा जाने कौन सा मौसम आ गया...
दो क़दम साथ चले थे की मोड़ आ गया....
*
उसकी यादों के ज़ख्म अब भरने ही लगे थे
उसकी यादों के ज़ख्म अब भरने ही लगे थे
बेवफा वोह किसी गैर के साथ फिर नज़र आ गया...
दो क़दम साथ चले थे की मोड़ आ गया....
*
सोचा था अब न करेंगे किसी से मुहब्बत रोमिल
सोचा था अब न करेंगे किसी से मुहब्बत रोमिल
न जाने क्यूँ फिर यह दिल किसी पर आ गया...
दो क़दम साथ चले थे की मोड़ आ गया
मुहब्बत का कोइए हमको
सबक सीखा गया...
दो क़दम साथ चले थे की मोड़ आ गया
मुहब्बत का कोइए हमको
सबक सीखा गया...
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2 comments:

  1. well written LM,

    Brso bd b uski ADT na bdi,
    BE-WAFAI ke,
    kash main mhbt nai,
    uski ADAT hota

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  2. sukriya...

    nice...

    bas nazar-nazar ka fark hota hai
    kisi ki nazar mein BEWAFAI
    kisi ke nazar mein WAAFA hota hai...

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