Saturday, December 18, 2010

तुम

जब मैं घर की उलझनों में उलझा हुआ हूँ तो
तुम ख़ुशी का पैगाम बनना...

जब मैं धूप से लिपटा हुआ हूँ तो 
तुम घनी हुई शाम बनना...

जब मैं ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में थका हुआ हूँ तो 
तुम मेरा सहारा बनना...

जब मैं अन्धकार में खोया हुआ हूँ तो
तुम मेरा प्रकाश बनना...

जब मैं हालातों के बादलों में छुपा हुआ हूँ तो 
तुम मैं बनना...
[written by Romil - copyright reserved]

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