Friday, February 4, 2011

सन... सुना... सन... सुना...

सुनो न... बड़े प्यार से यह शब्द कहता था
जब-जब मैं उसके खवाबो-ख्यालों में खोया रहता था...
*
मेरे कानों पर वोह हल्का सा हवा का झोखा देता था
कभी मेरे कन्धों पर वोह अपनी नाक रगड़ देता था...
जब-जब मैं उसके खवाबो-ख्यालों में खोया रहता था...
*
जबरदस्ती वोह मेरी गोद में लेट जाता था
कभी मेरे बालों के साथ खेला करता था...
जब-जब मैं उसके खवाबो-ख्यालों में खोया रहता था...
*
ऐसी ही जोर से मुझे अपनी बाहों में भर लेता था
कभी अपनी उंगलियो को मेरी उंगलियो में जकड़ लेता था...
जब-जब मैं उसके खवाबो-ख्यालों में खोया रहता था...
*
अब मैं, सुनो न... शब्द सुनने को तरसता रहता हूँ
खुद से यही कहता हूँ
सन... सुना... इन चलती हुई हवा ने कुछ कहाँ
सन... सुना... इन बारिश की बूंदों ने कुछ कहाँ
सन... सुना... यह खुशबू कुछ कहती हैं...
सन... सुना... सन... सुना...
[written by romil - copyright reserved]

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