Sunday, March 27, 2011

यह मोहब्बत भी कैसी ज़ंजीर है

रोमिल यह मोहब्बत भी कैसी ज़ंजीर है 
न तोड़ी जाती है
न बंधन में बंधी जाती है...
*
ज़माने से डरती भी हूँ
तुझसे प्यार करती भी हूँ
महज दो क़दम ही दूर है तेरा घर मेरे घर से
मगर आने से डरती भी हूँ
लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे
इसे प्यार समझेंगे या कुछ और नाम देंगे
यही सोच कर पल - पल मरती भी हूँ
ज़माने से डरती भी हूँ
रोमिल तुझसे प्यार करती भी हूँ

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