अब तेरा शहर इश्क के काबिल न रहा
जिस महबूब पर नाज़ था मुझको
वो महबूब, महबूब न रहा...
पत्तों की तरह टूटा मेरे दिल का पुर्जा-पुर्जा
जब-जब आया तूफ़ान साहिल का कोई साथी न रहा...
कई रात सोये थे जिसकी बाहों में बाहे डालकर
उससे तो अब ख्वाबों का भी रिश्ता न रहा...
लाख मौसम की तरह रंग बदलता रहा वो रोमिल
उसके जाने के बाद फिर कोई हमसफ़र,
कोई हमदम न रहा...
अब तेरा शहर इश्क के काबिल न रहा...
#रोमिल
No comments:
Post a Comment