Tuesday, April 26, 2011

हर मंज़र मुझको याद हैं...

याद हैं ...मिट्टी के वोह छोटे-छोटे घर बनाना 
गीले-गीले हाथों को तेरे दुपट्टे से पोछना
पानी की बूंदों से एक दूसरे को नहलाना
तितलियों के पीछे भागते हुए जाना...
कितने दिन बीत चुके हैं
लेकिन फिर भी हर मंज़र मुझको याद हैं...
***
याद हैं... स्केच पेन से तेरे माथे पर बिंदी बनाना
अपनी हथेली पर तेरा नाम लिखना
तेरे हाथों की कटोरी में पानी पीना
पैरों के निशां पर तेरे चलते जाना...
कितने दिन बीत चुके हैं
लेकिन फिर भी हर मंज़र मुझको याद हैं...
***
याद हैं... अपने चहरे को तेरे दुपट्टे से धक कर
नीम के पेड़ के नीचे सो जाना
तेरे स्कूल बैग का तकिया बनाना
नीम की टहनी से तेरा, मेरे कानो को गुदगुदाना...
कितने दिन बीत चुके हैं
लेकिन फिर भी हर मंज़र मुझको याद हैं...
नाज़... हर मंज़र मुझको याद हैं...

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