Wednesday, August 31, 2011

मौसम

मौसम भी सर्द था
हल्का-हल्का कोहरा फैला हुआ था
सूरज अभी अंगराई ले रहा था, बस जगा-जगा सा था
बस स्टैंड पर मैं थी और सन्नाटा था...

एक जाना-पहचाना सा अनजान चेहरा मेरे पास आया
हाथों में गुलाब और एक ख़त साथ लाया

देते हुए मुझसे बोला

"रात भर सोचता रहा कि तुझे क्या लिखूं?
ऐसा क्या नहीं लिखा है मैंने पहले तेरे बारे में,
जो अब लिखूं?
लफ्ज़ अब रहे ही नहीं है
बस कोरे कागज़ पर तेरा नाम लिख लाया हूँ
बाकी जो तू चाहे
जिसका तू चाहे
नाम लिख सकती है
हाल-ए-दिल लिख सकती है
पैगाम लिख सकती है...
गलती से अपना पता ही ख़त पर लिख लाया हूँ"


बस स्टैंड पर खड़ी मैं सोचती रही क्या जवाब दूं उसे,
ख़त पर क्या लिख कर भेज दूं उसे,
बस मैंने भी एक अनजान नाम, उसके नाम के साथ लिख दिया
और ख़त उसके पते पर भेज दिया.

कितना पागल निकला वोह रोमिल 
अभी तक उसी नाम को जपता रहता है
कभी सजदा करता है
तोह कभी आँखों से चूम लेता है
कभी रुमाल से ख़त को साफ़ किया करता है
तोह कभी रेशमी रुमाल से लपेट लिया करता है...

जाने कैसा मौसम था
जाने आज कैसा मौसम है...

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