साहिल पर न जाने कैसी ख़ामोशी छाई है
आज सागर किनारे आये तो तेरी याद बहुत आई है...
एक दूसरे का हाथ पकड़ कर जिस रेत से हम घर बनाया करते थे
आज वही रेत मेरे साथ, मेरे घर चली आई है...
मैं उस शख्स को कैसे माफ़ कर दूं
जिसने मेरी ज़िन्दगी से अवध (लखनऊ)-ए-शाम चुराई है...
मत छेड़ो यादों के सागर के पानी को रोमिल
यह लहरें लगता है फिर तुमको डूबोने आई है...
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