Sunday, December 25, 2011

सर्दियों के मौसम में वोह ट्रेन में मिली थी...

सर्दियों के मौसम में
वोह ट्रेन में मिली थी...
कपकपाती ठंडक में
एक शाल से लिपटी थी...
कभी खुद को उसमे समेटती
कभी खुद सिमट जाती थी...
सर्दियों के मौसम में
वोह ट्रेन में मिली थी...
***
चहरे पर दाग था
मगर किसी चाँद से कम न था...
हवां बार-बार लटें बिखेर देती थी
बार-बार वोह बिखरी लटों को
समेटती थी...
सर्दी के मारे आँखों से गिरता था पानी
वोह चश्मे को पोछकर
आँखों में लगा लेती थी...
सर्दियों के मौसम में
वोह ट्रेन में मिली थी...
***
पैरों की उँगलियों में ठण्ड के मारे लाली आ गई थी
बार-बार वोह उँगलियों को मरोड़ती थी...
नाक भी उसकी बहती जा रही थी
बड़ी अदा से वोह नाक को पोछती थी
फिर हांथों को जींस में रगड़ लेती थी....
सर्दियों के मौसम में
वोह ट्रेन में मिली थी...
***
जब वोह खुद को लपेटे शाल में
बेंच में सोई थी
मानो किसी कलाकार ने कोई
हसीं कला बनाई थी...
रोमिल, सर्दियों के मौसम में
वोह ट्रेन में मिली थी...
कपकपाती ठंडक में
एक शाल से लिपटी थी...

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