Wednesday, October 6, 2010

तहज़ीब-ए-मोहब्बत

वोह भी ज़माने हुआ करते थे...
वोह हमसे दूर-दूर रहते थे
मगर नज़रों के करीब रहते थे...
*
अदाएं शान-ओ-शोकत से हमारी उठाते थे
मगर नज़रों से परेशान रहते थे...
*
हम तो कह देते थे हाल-ए-दिल अपनी तन्हाई का
वोह नज़रों से गुफ्तगू किया करते थे... 
*
इतनी तहज़ीब-ए-मोहब्बत तो बाकी थी हममें
जब उनको गैर की बाहों में देखते थे
नज़रे झुका लेते थे...
[COPYRIGHT RESERVED]

No comments:

Post a Comment