Tuesday, November 9, 2010

कुछ इस तरह

मेरे बच्चों ने मुझे बांट लिए कुछ इस तरह
जैसे मैं माँ नहीं लूटा हुआ खज़ाना हूँ...
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तूने शराब बेच कर जो घर खरीदा था
तेरे बच्चे उसी घर को बेच कर शराब पीते हैं...
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इस बात की ख़ुशी हैं तूने बहू को कंगन लाकर दिया
मगर इस बात का गम हैं तूने माँ को बताना भी मुनासिफ नहीं समझा...
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जिस घर का नाम तूने माँ-छाया रखा हैं
उसी घर में माँ की छाया नहीं हैं...
(कही सुना सुना सा हैं...)   

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