कितना मुश्किल होता हैं
मकान को घर बोलना...
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साथ चलने वाले को कभी परखा नहीं
कितना मुश्किल होता हैं
उसे हमसफ़र बोलना...
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पैसे और औदे की बैसाखी पहने हुए
कितना मुश्किल होता हैं
उसे सरकार बोलना...
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चंद सिक्को में बेच दी शहीदों की कुर्बानी
कितना मुश्किल होता हैं
उसे आदर्श सोसाइटी बोलना...
#रोमिल
guddddd g gudddd
ReplyDeletekash muje mlum ho jye,
tri soch ka ishra,
to mai khud ko trashhu,
tri andaz-e-nzr se