सबसे नज़र बचा कर वोह मुझसे मिलाने आई थी
पूछो न यारों किसी क़दर वोह रात बिताई थी...
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कुछ तो सर्दी का आलम था
कुछ जिस्म भी अपना गरम था
दूर-दूर खड़े थे दोनों
आँखों से शमा जलाई थी...
पूछो न यारों किसी क़दर वोह रात बिताई थी...
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मेरी गोद में लेट कर
बाज़ुओं में मेरी उसने मुहब्बत की नयी दुनिया सजाई थी
पूछो न यारों किसी क़दर वोह रात बिताई थी...
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चूडियो की खनखनात
पायल की झंकार
चाँद ने छत पर सफ़ेद चांदनी बिछाई थी
पूछो न यारों किसी क़दर वोह रात बिताई थी...
*
उसके दुपट्टे का मेरे चेहरे पर उड़ना
होंठो का बेबसी सा तड़पना
खुदा ने भी कैसे शर्म की निगाह बनायी थी...
पूछो न यारों किसी क़दर वोह रात बिताई थी...
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