Tuesday, November 30, 2010

जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई

जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी शब्-ए- बहार हो गई
मुझसे न पूछो हाल-ए-दिल सनम
आपकी जान थी
आप पर कुर्बान हो गई...
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी शब्-ए- बहार हो गई....
*
वैसे तोह हम थे महफ़िल-ए-चिराग
आपके क़दम जो पड़े
महफ़िल थी मेरी
आपके नाम हो गई...
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी शब्-ए- बहार हो गई....
*
मुझसे न करो त्योंहार की बातें यारों 
ज़िक्र जब होता है उनका
अपनी तो ईद
अपनी दिवाली हो गई...
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी शब्-ए- बहार हो गई....
*
दरिया माझी भी देख कर खुश हुआ
उसके पहलु में अपनी शामे हो गई..
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी शब्-ए- बहार हो गई....
*
ज़ुल्म तकदीर का हम पर यूं हुआ
मुस्कुराते मुस्कुराते वोह बेवफा हो गई...
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी शब्-ए- बहार हो गई....
*
रुक्सत-ए-सनम हमसे यूं हुई  
शहर के हर एक मकान में जाकर पूछते है
जो मेरी थी वोह किस की हो गई...
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी गुमनाम हो गई....
[WRITTEN BY ROMIL - COPYRIGHT RESERVED]

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