ज़िन्दगी अपनी शब-ए-बहार हो गई
मुझसे न पूछो हाल-ए-दिल सनम
आपकी जान थी
आप पर कुर्बान हो गई...
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी शब-ए-बहार हो गई....
*
वैसे तो हम थे महफ़िल-ए-चिराग
आपके क़दम जो पड़े
महफ़िल थी मेरी
आपके नाम हो गई...
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी शब-ए-बहार हो गई....
*
मुझसे न करो त्यौहार की बातें यारों
ज़िक्र जब होता है उनका
अपनी तो ईद
अपनी दिवाली हो गई...
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी शब-ए-बहार हो गई...
*
दरिया-मांझी भी देखकर खुश हुआ
उसके पहलू में अपनी शामे हो गई...
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी शब-ए-बहार हो गई...
*
ज़ुल्म तकदीर का हम पर यूं हुआ
मुस्कुराते-मुस्कुराते वो बेवफा हो गई...
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी शब-ए-बहार हो गई...
*
रुख़सत-ए-सनम हमसे यूं हुई
शहर के हर एक मकान में जाकर पूछते है
जो मेरी थी वो किस की हो गई...
जबसे नज़रे चार तुमसे हो गई
ज़िन्दगी अपनी गुमनाम हो गई...
#रोमिल
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