Wednesday, December 1, 2010

वोह पेड़ बूढा है फिर भी घना रहता है...


उम्र के आखिरी पलों में जब हम-तुम और सिर्फ यादें होंगी...
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यादों का घर कितना सुहाना लगता है
वोह पेड़ बूढा है फिर भी घना रहता है...
*
वक़्त के पाँव कब रुकते है
चहरे बदल जाते है
तस्वीरों से रिश्ता जुडा रहता है
वोह पेड़ बूढा है फिर भी घना रहता है...
*
आँख तो भर आती है पानी से
होंठो पर कमल सा खीला रहता है
वोह पेड़ बूढा है फिर भी घना रहता है...
*
गाँठ बंधी जो रिश्तों की
टूटे न टूटी
जीवन का पहिया इस पर ही चलता रहता है
वोह पेड़ बूढा है फिर भी घना रहता है...
*
वोह मेरा ख्याल रखती है
मैं उसका ख्याल रखता हूँ
बस यूं ही अपना इश्क चलते रहता है
वोह पेड़ बूढा है फिर भी घना रहता है...

जिस्म का साथ छूता
बुढ़ापे का हाथ थामा  
दिल से जुडा हर फ़साना रहता है...
वोह पेड़ बूढा है फिर भी घना रहता है...
[WRITTEN BY ROMIL - COPYRIGHT RESERVED]

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