दिल की आरज़ू हैं की परिंदा बन जाऊं
कभी तेरे शहर में भी आऊँ
तेरे घर की छत पर बैठ के
कभी तेरे हाथों से दाना खाऊँ...
*
चांदनी रातों में तुझे सोते हुए देखूं
सूरज की पहली किरन के साथ जागते हुए देखूं
तुझे कमरे में ठहलते हुए पाऊँ
तेरे घर की खिड़की में बैठ के
कभी तेरे हाथों से दाना खाऊँ...
दिल की आरज़ू हैं कि परिंदा बन जाऊं
कभी तेरे शहर में भी आऊँ...
*
यूंही किताबों के साथ लड़ते हुए देखूं
भगवान् को पूजते हुए देखूं
कुछ गुनगुनाते हुए पाऊँ
तेरे घर के आँगन में बैठ के
तेरे घर के आँगन में बैठ के
कभी तेरे हाथों से दाना खाऊँ...
दिल की आरज़ू हैं कि परिंदा बन जाऊं
कभी तेरे शहर में भी आऊँ...
#रोमिल
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