Tuesday, January 25, 2011

दिल की आरज़ू हैं की परिंदा बन जाऊं

दिल की आरज़ू हैं की परिंदा बन जाऊं
कभी तेरे शहर में भी आऊँ
तेरे घर की छत पर बैठ के 
कभी तेरे हाथों से दाना खाऊँ...
*
चांदनी रातों में तुझे सोते हुए देखूं
सूरज की पहली किरन के साथ जागते हुए देखूं
तुझे कमरे में ठहलते हुए पाऊँ 
तेरे घर की खिड़की में बैठ के 
कभी तेरे हाथों से दाना खाऊँ...
दिल की आरज़ू हैं कि परिंदा बन जाऊं
कभी तेरे शहर में भी आऊँ...
*
यूंही किताबों के साथ लड़ते हुए देखूं
भगवान् को पूजते हुए देखूं
कुछ गुनगुनाते हुए पाऊँ 
तेरे घर के आँगन में बैठ के 
कभी तेरे हाथों से दाना खाऊँ...
दिल की आरज़ू हैं कि परिंदा बन जाऊं
कभी तेरे शहर में भी आऊँ...

#रोमिल

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