एक टूटा हुआ घर हैं दुनिया मेरे सामने
रब भी कुछ नहीं हैं मेरी दोस्ती के सामने...
***
कहने को तो सबने चहरे पर चहरे लगा रखे हैं
मगर सारे नकाब उतर जाते हैं मेरे सामने...
***
कौन खरीद सकता हैं मुझसे मेरी दोस्ती
यह दौलत भी मिटटी हैं मेरे सामने...
***
चाहत तो इतनी हैं आसमान में नाज़ का नाम लिख दूं रोमिल
मगर कुछ नहीं कर पाया अपनी मजबूरियों के सामने...
***
ऐसी सौ ज़िन्दगी लूटा सकता हूँ नाज़ के लिए रोमिल
बहुत छोटी सी बात हैं नाज़ के एहसानों के सामने...
No comments:
Post a Comment