चादर पर तारे सजाये बैठा था
वो रात भर चाँद के इंतज़ार में बैठा था...
इंतज़ार था उसे अपने दिल की दुल्हन का
वो रात को डोली की तरह सजाये बैठा था...
जुबान में लफ्ज़ अटके हुए थे
वो कागज़ पर जज़्बात लिखे बैठा था...
जाने कब बज उठे किवाड़ की सिटकनी
वो किवाड़ पर नज़रे गड़ाये बैठा था...
जाने क्या सोचकर वो नहीं आई
सहमा - सहमा सा
डरा - डरा सा
वो आज भी बिस्तर पर रूह से रूह का एहसास लिए बैठा था...
रोज़ सुबह निकली
मगर आँखें नहीं सोई रोमिल
न अँधेरा,
न उजाला,
वो दिन को रात
और रात को दिन किए बैठा था...
चादर पर तारे सजाये बैठा था...
#रोमिल
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