महीने हुए मुलाक़ाते नहीं होती
दरीचों से छुप-छुप कर झांकते रहते है बातें नहीं होती.
लफ्ज़ जैसे ठहर से गए हो
आँखें जैसे पथरा सी गई हो
बड़ी बेचैन सी रहती है यह खिड़कियाँ
दरीचों से छुप-छुप कर बातें नहीं होती.
बहुत मशरूफ़ रहता है आजकल वो
दिनभर आवारा बना रहता है आजकल वो
किस कूचें, किस गली, किस चौक पर बैठा है आजकल वो
आज कल उससे छत की मुंडेरों पर मुलाकातें नहीं होती..
महीने हुए मुलाक़ाते नहीं होती
रोमिल दरीचों से छुप-छुपकर झांकते रहते है बातें नहीं होती.
#रोमिल
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