Thursday, August 4, 2011

महीने हुए मुलाक़ाते नहीं होती

महीने हुए मुलाक़ाते नहीं होती
दरीचों से छुप-छुप कर झांकते रहते है बातें नहीं होती.

लफ्ज़ जैसे ठहर से गए हो
आँखें जैसे पथरा सी गई हो
बड़ी बेचैन सी रहती है यह खिड़कियाँ 
दरीचों से छुप-छुप कर बातें नहीं होती.

बहुत मसरूफ रहता है आजकल वोह
दिन भर आवारा बना रहता है आजकल वोह
किस कूचें, किस गली, किस चौक पर बैठा है आजकल वोह 
आज कल उससे छत की मुंडेरों पर मुलाकातें नहीं होती..

महीने हुए मुलाक़ाते नहीं होती
रोमिल दरीचों से छुप-छुप कर झांकते रहते है बातें नहीं होती.

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