वोह दिन
वोह दिन कितने याद आते है. जब पार्क में खेलते-खेलते, जींस के घुटने पर घास के धब्बे लग जाते थे.
जब सुबह ब्रुश को माइक की तरह हाथों में पकड़ कर गाना गाते थे.
जब सुबह और शाम को दूध पीने के समय, ऊपर छत पर जाकर एक कोने में छुप जाते थे.
जब बीमारी में खाने को दवाई टिकिया मिलती थी तो उसको बेड के नीचे फेक देते थे और
जब सर्दियों में रजाई के अन्दर छुपकर दूसरे को गुदगुदी करते थे और फिर सर से रजाई ओढ़ कर सो जाते थे.
No comments:
Post a Comment