Wednesday, March 14, 2012

छिप-छिप के आंसू मत बहाओ,

छिप-छिप के आंसू मत बहाओ
यह हीरे, मोती है इनको व्यर्थ मत गवाओ
नयन में सेज के इनको रखो
सावन के पानी की तरह मत बहाओ.

बिखर गई ज़िन्दगी की माला है तो क्या
दीपक भूझ गए है तो क्या
तूफ़ान में टूटा घर है तो क्या
चहरे पर शिकन मत लाओ
छिप-छिप के आंसू मत बहाओ.

देखो माँ चाँद से मुखड़े को देख रही होगी
तेरी कामयाबी की दुआ कर रही होगी
किसी फ़रिश्ता को तेरी हिफाजत सौप रही होगी
चाँद से मुखड़े पर नाराज़गी मत लाओ 
छिप-छिप के आंसू मत बहाओ.

- रोमिल

No comments:

Post a Comment