Thursday, March 15, 2012

जब माँ खेल खिलाती थी.

दुनिया सिमटकर 
आंगन बन जाती है 
जब माँ खेल खिलाती थी.

घर के पास बने पार्क में 
झूला झुलाती थी 
हरी घास पर नंगे पाँव चलवाती थी.

पढाई के वक्त 
हवा के लिए मेज के सामने वाली खिड़की खोल देती थी 
दूध से भरा गिलास पिलाते थी.

माँ के साथ रहकर  
मैं कभी एकान्त नहीं होता था 
माँ मेरा हर पल ख्याल रखती थी.

- रोमिल

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