Sunday, April 15, 2012

जब

१. जब अजीब ख़ामोशी छाई थी. सिर्फ माँ की सुबकियाँ सुनाई दे रही थीं. वोह दिन ज़िन्दगी का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण था. 

२. जब कोई छोटा सा चूहा चमड़े के पुराने जूतों में सुखी और सुरक्षित महसूस करता हैं.

३. जब कोई बुड्डी औरत एक छड़ी के सहारे अपनी कुर्सी से खड़ी होती हैं और धीरे-धीरे हमारे पास आती हैं.

४. जब नर्स पानी के गिलास और दो छोटी गुलाबी गोलियाँ लेकर माँ के पास आती थी और मुस्कुराकर कहती थी, दवाई का समय हो गया और दोपहर में आपकी झपकी का वक़्त हो गया हैं.

५. जब आपका मोजा और जूता घर भर में घूमता रहता हैं. 

६. जब अख़बार लपेट कर दोस्त के सर पर मरते हैं.

७. जब हम अपने बच्चे को पहली बार अपने पैरों पर चलता हुआ देखते हैं.

८. जब हॉस्टल के गलियारे में दबे पाँव चलकर हम दोस्त के कमरे तक पहुँचाते हैं, और दरवाज़े पर कान लगाकर बात सुनने की कोशिश करते हैं.

९. जब सर्दी में गर्म पानी में नहाकर, गर्म बिस्तर पर सो जाते हैं.

१०. जब हम पहली बार एक-दूसरे की रजामंदी से एक-दूसरे को प्यार करते हैं. मिलन का आनंद लेते हैं.

११. जब हम किसी को देखकर अपनी कार की खिड़की का काँच नीचे कर लेते हैं.

१२. जब हम अपने पालतू जानवर को माँ बनते हुए देखते हैं. प्रसव के समय उसकी मदद करते हैं, उसको सहलाते हैं, उससे बातचीत करते हैं. किसी बंद झिल्ली में फसे बच्चे को देखते हैं, पालतू जानवर को वोह झिल्ली साफ़ करते देखते हैं, गन्दा और चिपचिपा बच्चा निकलते देखते हैं. किस तरह माँ बनी पालतू जानवर अपने बच्चे को चाटकर साफ़ करती हैं. यह सबसे संतोषदायक अनुभव होता हैं.

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