माँ से बिछड़ गया तो कहाँ जाऊँगा
ज्यादा देर तक आसमान को देखूंगा तो गिर जाऊँगा
मैं इसी उम्मीद पर जिंदा हूँ
एक दिन इसी मिट्टी में मिल जाऊँगा
चाहे पहुँच जाऊं मैं आसमान की बुलंदियों तक
जिस दिन माँ को भूलूंगा मर जाऊँगा
और
उसके परिवार वाले भी मेरे अपने है
उनके मरने की दुआ पढूंगा तो काँप जाऊँगा
मगर यह भी सच है
उनका सगा बना तो मैं अपनी माँ का गुनाहगार हो जाऊँगा।
- रोमिल
No comments:
Post a Comment