Sunday, May 27, 2012

वोह चाहते है कि कोई उसने अहल-ए-वफ़ा न करें

वोह चाहते है कि कोई उसने अहल-ए-वफ़ा न करें
खुदा सामने भी हो और इबादत न करें 
बस इतनी सी राहत मुझे मिली है उससे
मुहब्बत तो करें मगर इज़हार की जुर्रत न करे।

और

लब कह रहे है उठ और चूम ले माँ के पैरों को
शायद तेरे गुनाह-ए-अज़ीम इस बार माँ माफ़ करें
दिल चाहता है फिर माँ मेरे साथ दिन-रात हो
कुदरत शायद कोई करिश्मा करें।

और

वोह दे रहा है मुझे कुछ इस तरह फरेब
साथ मेरे है और बातें किसी गैर की करें
शाम-ए -विसाल भी और यह तगाफुल, यह बेरुखी
खुदा किसी को इस तरह मुहब्बत में तबाह न करें।

- रोमिल 



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