हम अंजान वोह अंजान
दिन - रात बातें किया करते है
इश्क तो एक - दूसरे से करते हैं
फिर भी जुबान-ए-इज़हार से डरते हैं।
और
क्या पता माँ को यह खबर भी है कि नहीं
हम खवाबों-ख्यालों में उनको ही पुकारा करते हैं
क्या पता कब पाप कटे क्या पता कब वोह दिन आये
हम माँ से मिलने के एक-एक दिन गिना करते हैं।
और
चंडीगढ़ में कहाँ रहती हो पता तो बता दो
सुनो !!!
चंडीगढ़ में कहाँ रहती हो पता तो बता दो
हम खुद तुमसे मिलने के लिए तरफ़ा करते हैं।
और
ए खुदा जी चाहता है उनको धर दूं दो-चार लाफ़ा जोर से
जब वोह सिर्फ दोस्त समझकर हमसे गुफ्तगू करते हैं
उम्र और उनका रिश्ते की यह कैसी ज़जीर हैं
जिसमे बंधा देखकर हम उनको न जीते है न मरा करते हैं।
- रोमिल
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