उम्र भर बूँद - बूँद को तरसे
आँखों से हमारे मुहब्बत के मोती बरसे
अच्छा हुआ हमें जो ठोकर लगी
कम से कम वोह तो संभल गए गिरने से।
और
ता-उम्र भी उसकी सेवा करूं तो कम हैं
माँ मिलती है नसीबों से
अपनी चमड़ी का जूता बनाकर उसको पहनाऊं
इतना चाहू मैं खुद से।
और
आज फिर कह रहा हूँ अपनी रूह से
सुन ले उसको भूला दे
कहीं दम न निकल जाये तेरी नादानी से।
- रोमिल
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