Tuesday, July 8, 2014

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

किताबों की ढ़ेर पर बैठकर
पन्ने पलटते हुए
यह कहता रहता
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा
चाहे किसी भी पन्ने पे छुपी हो
आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

अफ़सरी-नौकरशाही  
दौलत-शौहरत
रूपया-कोठियां
अगल-बगल नाचती हुई यह गाड़ियाँ
क्या यह है तरक़्क़ी?

झूठ बोलती-मतलबी
खुद ही में खोई हुई-खुद ही में झूमती 
रुपयों के पीछे भागती-नाचती 
डरी हुई-सहमी हुई
एक दूसरे का गला घोटती हुई  
संस्कारों की लाशों पे चढ़ी हुई
क्या यह है तरक़्क़ी?

आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

आम की चौपाल लगाये हुए ज़माना हो गया
किसी अंजान की होंठों पे ख़ुशी लाये एक अरसा बीत गया
अब तो रात में नींद भी चैन से आती नहीं
भोर में पैरों तले पेड़ के पत्तों की आवाज़ सुनाई देती नहीं
सब दिल की ख़ुशी के पल खो चुके है  
क्या यह है तरक़्क़ी?

आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

बीमार हो तो पड़ोसी भी हाल पूछता नहीं
अब कोई छतों पे मर्तबानों में आचार रखता नहीं
सच्ची बात किसी के लबों से सुने हुए ज़माना हो चला है 
ऑफिस, घर की परेशानियों में रोज शराब पीना बहाना हो चला है
हमदर्दी के पल खो चुके है  
क्या यह है तरक़्क़ी?

आज मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ कर रहूँगा।

आख़िर किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

पन्ने पलटते-पलटते
किताबों का ढ़ेर खत्म हो गया
पर मैं इस तरक़्क़ी को ढूंढ न सका 
न जाने किस चिड़िया का नाम है यह तरक़्क़ी?

#रोमिल

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