Tuesday, September 28, 2010

पर वो मेरे प्यार की कद्र न समझ पाए.

इतने दिनों के बाद वो आये
न कोई पैग़ाम
न कोई हालचाल संग लाये...
*
किससे कहे अपनी रात का आलम 
वो चाँद तो बनकर आये 
मगर चांदनी संग न लाये.
*
लेना चाहता था उनसे लम्हा-लम्हा का हिसाब
वो साथ अपने पहचान तक न लाये.
*
प्यार तो किया था हमने उनसे बेशुमार
पर वो मेरे प्यार की कद्र न समझ पाए.

#रोमिल

1 comment:

  1. shiqayat humain bhi zndge se nahi,
    jee rahe hain magr khushi se nahi,
    dukh bhi diya har shaqs ne humko,
    aur khafa bhi hum kisi se nahi

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