बहुत गम उठाए अपनों के लिए
दुश्मन भी बनाये अपनों के लिए...
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छोटी सी उम्र में गम-ए-समुन्दर से खेला
तूफानों से भी भीड़ गए अपनों के लिए...
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ठंडी - ठंडी हवा के झोके को छोड़ कर
शोले पर सोये अपनों के लिए...
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चार दिवारी में बंद रखी अपनी खवाइश
रेज़ा - रेज़ा अरमान जलाये अपनों के लिए...
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