Saturday, October 30, 2010

किसी ने तेरे शहर का ज़िक्र किया तो तोह मुहब्बत के ज़माने याद आये...

जान... ओ जान...
कुछ भूली बीती बातें
कुछ फ़साने याद आये
किसी ने तेरे शहर का ज़िक्र किया तो तोह मुहब्बत के ज़माने याद आये...
***
वोह तरफ्ना
वोह मचलना
वोह इंतज़ार के पल याद आये
किसी ने तेरे शहर का ज़िक्र किया तो तोह मुहब्बत के ज़माने याद आये...
***
ज़रा शेर पर गौर फरमाइएगा...
जली हुई राख में चिंगारी दबी रही
मत कुरेदो ज़माने वालो कहीं आग न लग जाये...
***
किसी ने तेरे शहर का ज़िक्र किया तो तोह मुहब्बत के ज़माने याद आये...
बातों में वोह तहज़ीब आज भी याद हैं मुझे
अपना कहकर मेरी तस्वीर को गले लगाना आज भी याद आये
किसी ने तेरे शहर का ज़िक्र किया तो तोह मुहब्बत के ज़माने याद आये...
***
हस हस के बात करना
चुपके से रो लेना
अदाएं तेरी आज भी मेरे दिल पर खंजर चलाये...
किसी ने तेरे शहर का ज़िक्र किया तो तोह मुहब्बत के ज़माने याद आये...
[copyright reserved]

No comments:

Post a Comment