Wednesday, December 8, 2010

समेट लूं...

कही बह न जाये इसमें अपना रिश्ता 
उससे मिलने से पहले 
मैं अपनी आँखों का समुन्दर समेट लूं
*
बड़ी जोर आया हैं तूफ़ान अबकी बार
कही बह न जाऊँ, उससे पहले
यादें समेट लूं.
*
वक़्त के साथ - साथ रंग बदलते रहे अपने
उससे पहले दुश्मन हो जाये
दोस्त समेट लूं..
*
आज कल जिसे देखो खुदा बनने में लगा हैं
उससे पहले इंसान न रह जाये
इंसान समेट लूं...

#रोमिल

No comments:

Post a Comment