Wednesday, December 15, 2010

अब यह तबियत हैं कि सुधारने का नाम नहीं लेती

अब यह तबियत हैं कि सुधारने का नाम नहीं लेती
तू इतने दिल के करीब रहती हैं
फिर भी करीब नहीं रहती...
*
हम चिरागों को जलाते रहते हैं, भुजाते रहते हैं रात भर 
इतनी लम्बी रात हैं 
कि सुबह साथ नहीं रहती...
*
इस क़दर आसान न होगा तेरे साथ दोस्ती का सफ़र
तू मेरी दोस्त हैं
फिर भी अपने बीच दोस्ती नहीं रहती...
*
बस कुछ दिन और बिताऊ फिर चला जायूँगा इस शहर से
मोहब्बत तोह हैं तुझसे 
मगर इबादत साथ नहीं रहती...
[written by romil - copyright reserved]

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