Sunday, February 5, 2012

आँखों में छोटे - छोटे सपने सजा देती थी

आँखों में छोटे - छोटे सपने सजा देती थी
नींद नहीं आती थी तो माँ लोरी सुना देती थी.

कभी कहानियाँ सुनाती तो कभी चित्र बनाती थी
जब अंग्रेजी, गणित भाषा समझ न आये तो माँ बड़े प्यार से समझाती थी.

जब बत्ती चली जाती थी तो माँ मोमबत्ती जला साथ बैठती थी
कभी टीवी पर साथ बैठा रंगोली, रामायण, महाभारत दिखाती थी.

जब छोटा था मैं रोमिल... मेरा हाथ कभी नहीं छोड़ती थी
अपनी गोद में बैठा मुझे झूला झुलाती थी.

जीवन की भाग दौड़ में माँ हमेशा साथ रहती थी
पल भर में हँसाती थी, सरे दुःख-दर्द भुला देती थी.

आँखों में छोटे - छोटे सपने सजा देती थी
नींद नहीं आती थी तो माँ लोरी सुना देती थी.

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