Tuesday, February 21, 2012

कल रात कमरे में गया तो बैठे-बैठे कुर्सी पर सोचने लगा यह...

कल रात कमरे में गया तो बैठे-बैठे कुर्सी पर सोचने लगा यह...
माँ... रसोई घर से अब पहले जैसी खाने की महक नहीं आती
अब न सुखमनी साहिब, न जपुजी साहिब और न दुखभंजनी साहिब के शबद सुनाई देते है... 
ताम्बे के लोटे में अब पीने के लिए कोई पानी भरकर रखता नहीं
अब न्यूज़पेपर भी मेरे तकिये के नीचे मिलता नहीं 
फ्रीज में भी रखे हुए कहीं अंगूर दिखते नहीं
अब कमरे में एक घुटन सी रहती है...

माँ... कल रात कमरे में गया तो बैठे-बैठे कुर्सी पर सोचने लगा...

#रोमिल

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