Monday, February 20, 2012

माँ... तेरी डांट, मार बहुत खाते थे...

माँ तेरी डांट बड़ी याद आती है 
आज भी होंठों पर हंसी, आँखों में नमी आ जाती है...
~*~
मैदान में जाकर जब हम पतंग उड़ाते थे
उड़ाते-उड़ाते घर की चाभी कहीं खो आते थे
किसी मिस्त्री को पकड़कर फिर घर का ताला तुडवाते थे.
माँ... तेरी डांट, मार बहुत खाते थे...
~*~
अपनी शैतानियों से तुझे तंग बहुत करते थे
तुझे बहुत हम सताते थे
जब हदे पार हो जाती थी
फिर माँ तेरे हाथों से घर से निकले जाते थे
ठिठुरती सर्दी में बोरी में रात बिताते थे.
माँ... तेरी डांट, मार बहुत खाते थे... 
~*~
दिनभर आवारा बनकर नाज़ के मोहल्ले में फिरा करते थे 
पढाई से जी जुराया करते थे 
एक्साम में जब हम तीसरी या चौथी श्रेणी में आते थे
तो आपको बिना बताये नाना जी से एक्साम कार्ड पर हस्ताक्षर करवाते थे
माँ... तेरी डांट बहुत खाते थे...
~*~
माँ तेरी डांट बड़ी याद आती है 
आज भी होंठों पर हंसी, आँखों में नमी आ जाती है...

No comments:

Post a Comment