कल दिन भर,
रात भर देखता रहा घर के कमरे का कोना - कोना
तेरी तस्वीर पर माला लिपटी
धूल-मिट्टी से भरा हर कोना - कोना
सुनी सी छत
पसीजती दीवारें
खामोश हवा
अलग-थलक पड़ा बिस्तर की चादर का कोना-कोना.
बेहद नीरस, बेहद उदास, बेहद परेशां
दिखा यह मंज़र
जैसे तुझे रो - रो कर माँ पुकार रहा हो घर का कोना - कोना.
रात भर देखता रहा घर के कमरे का कोना - कोना
तेरी तस्वीर पर माला लिपटी
धूल-मिट्टी से भरा हर कोना - कोना
सुनी सी छत
पसीजती दीवारें
खामोश हवा
अलग-थलक पड़ा बिस्तर की चादर का कोना-कोना.
बेहद नीरस, बेहद उदास, बेहद परेशां
दिखा यह मंज़र
जैसे तुझे रो - रो कर माँ पुकार रहा हो घर का कोना - कोना.
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