Friday, March 9, 2012

कोना - कोना

कल दिन भर,
रात भर देखता रहा घर के कमरे का कोना - कोना

तेरी तस्वीर पर माला लिपटी
धूल-मिट्टी से भरा हर कोना - कोना

सुनी सी छत
पसीजती दीवारें
खामोश हवा
अलग-थलक पड़ा बिस्तर की चादर का कोना-कोना.

बेहद नीरस, बेहद उदास, बेहद परेशां
दिखा यह मंज़र
जैसे तुझे रो - रो कर माँ पुकार रहा हो घर का कोना - कोना.

No comments:

Post a Comment