पसीजते घर की दीवारों में तेरे चेहरे की छाया नज़र आती है
इक्के-दुक्का गली से गुजरने वाला इंसान तेरी सच्ची-झूठी बातें कह जाता है
धीरे - धीरे कमरे में रात उतरती है
लैपटॉप में आकर कही खो जाती है
जमुहाई लेकर सुबह उठाती है
झुरमुट लेकर चिड़िया चिचिहाती है
कंधे पर बैग टांगे मैं घर से निकल पड़ता हूँ
इस तरह ही कुछ पिछले दिनों से ज़िन्दगी कट रही है माँ.
- रोमिल
- रोमिल
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